आजु बने बन तैं ब्रज आवत।
नाना रंग सुमन की माला, नंद-नँदन-उर पर छबि पावत।
संग गोप गोधन-गन लीन्हे, नाना गति कौतुक उपजावत।
कोउ गावत, कोउ नृत्य करत, कोउ उघटत, कोउ करताल बजावत।
रांभति गाइ वच्छ हित सुधि करि, प्रेम उमँगि थन दूध चुवावत।
जसुमति बोलि उठी हरषित ह्वै कान्हा धेनु चराए आवत।
इतनी कहत आइ गए मोहन, जननी दौरि हिए लै लाबत।
सूर स्याम के कृत्य, जसोमति, ग्वाल बाल कहि प्रगट सुनावत।।480।।