आजु बने पिय रूप अगाध।
पर उपकार काज तनु धारयौ, पुरवत सब-मन-साध।।
धर्म नीति यह कहाँ पढ़ी जू, हमहूँ बात सुनावहु।
कहौ कहाँ, काकौ सुख दीन्हौ, काहै न प्रगट बतावहु।।
धनि उपकार करत डोलत हौ, आजु बात यह जानी।
'सूर' स्याम गिरिधर गुन नागर, अंग निरखि पहिचानी।।2536।।