आजु निसि रास रंग हरि कीन्हौ।
ब्रजबनिता-बिच स्याम मंडली, मिलि सबकौं सुख दीन्हौ।।
सुर-ललना सुर सहित बिमोहीं, रच्यौ मधुर सुर गान।
नृत्य करत, उघटत नाना-बिधि, सुनि मुनि बिसरयौ ध्यान।।
मुरली सुनत भए सब ब्याकुल, नभ-धरनी-पाताल।
सूर स्याम कौ को न किये बस, रचि रस-रास-रसाल।।1142।।