आजु निसि कहाँ हुते हो प्यारे।
तुम्हरी सौ कछु कहि न जाति छवग, अरुन नैन रतनारे।।
मेचक अधर, निमेष पीक रुचि, देखियत चिह्न तुम्हारे।
हृदय हार बिनु गुनहिं अलंकृत, मृगमद तिलक लिलारे।।
बोल के साँचे, आए भोर भए, प्रगटित कामकला रे।
दसनबसन पर छापि दृगनि छबि, दई बृषभानुसुता रे।।
अरु देखौ मुसुकाइ इते पर, सर्बस हरत हमारे।
'सूर' स्याम चतुरई प्रगट भई, आगे तै होहु न न्यारे।।2639।।