आजु नँद-नंदन रंग भरे।
बिधि लोचन सु बिसाल दुहुँनि के चितवत चित्त हरे।
भामिनि मिले परम सुख पायौ, मंगल प्रथम कर।।
कर सौं कर जु करयौ कंचन ज्यौं, अंबुज उरज धरे।
आलिंगन दै अधर पान करि, खंजन कज लरे।।
हठ करि मान कियौ जब भामिनि, तब गहि पाइ परे।
पुहुप मंजरी मुक्तनि माला, अँग अनुरागि धर।।
रचना सूर रची बृंदाबन, आनँद-काज करे।।689।।