आजु दोउ स्यामा स्याम बने -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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आजु दोउ स्यामा स्याम बने।
बिहरत फिरत बाहँ ग्रीवा धरि एकहिं प्रेम सने।।
बिबि उर पर बनमाल बिराजति स्रमसीकर जु घने।
मानहुँ चपल होत उडिबे कहँ चाहत कीर चुने।।
धीर समीर कलिंदी कै तट प्रफुलित कुंज बने।
‘सूरजदास’ बिलासरूपनिधि अँचवत दृग अपने।। 81 ।।

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