आजु दीपति दिब्य दीपमालिका।
मनहु कोटि रवि चंद्र कोटि छबि मिटि जो गई निशि कालिका।।
गोकुल सकल विचित्र मणि मंडित सोभित झाक झब झालिका।
गज मोतिन के चौक पुराये बिच बिच लाल प्रबालिका।।
वर श्रृंगार बिरचि राधा जू चलो सकल ब्रज बालिका।
झलमल दीप समीप सौंज भरि लै कर कंचन थालिका।।
करी प्रगट मदन मोहन पिय थकित बिलोकि बिसालिका।
गावत हँसत गवाय हँसावत पटकि पटकि करतालिका।।
नंद-द्वार आनंद बढ़यौ अति देखियत परम रसालिका।
सूरदास कुसुमनि सुर बरषत कर संपुट करि मालिका।।809।।