आजु जाइ देखौ वै चरन।
सीतल सुभग सकल सुखदाता, दुसह दोष दुख हरन।।
अंकुस कुलिस कमल धुज चिह्नित, अरुन कंज के रंग।
गो चारत बन जाइ पाइहौ, गोप सखिन के संग।।
जाकौ ध्यान धरत मुनि नारद, सुर बिरंचि अरु ईस।
तेई चरन प्रगट करि परसौ, इन कर अपने सीस।।
लखि सरूप रथ रहि नहिं सकिहौ, तिनि धरिहौ धर धाइ।
'सूरदास' प्रभु उभय भुजा धरि, हँसि भेटिहै उठाइ।।2948।।