आजु कहा मुख मूँदि रही री -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सूही


आजु कहा मुख मूँदि रही री।
सुनति नही है कुँवरि राधिका, कापर रिस करि मौन गही री।।
हमकौ यह काहै न सुनावति, हम हैं तेरी सग सखी री।
यह कहि कहि मुसुकाति परस्पर, चतुर नारि यह तबहिं लख री।।
कीधौ ध्यान करति देवनि कौ, कीधौ ऐसी प्रकृति परी री।
'सूर' जबहि आवति हम तेरै, तब तब ऐसी धरनि धरी री।।2054।।

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