आए माई दुरँग स्याम के सगी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


  
आए माई दुरँग स्याम के सगी।
जो पहिलै रँग रँगे स्याम के, तिनही की बुधि रगी।।
हमरी उनकी सी मिलवत हौ, तातै भए विहंगी।
सूधी कहि सबिहिनि समुझावत, ते साँचे सरबंगी।।
औरनि कौ सरबस लै मारत, आपुन भए अभंगी।
‘सूर’ सुनाम सिलीमुख जो पै, बेधन कवच उपगी।।3511।।

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