आई छाक, बुलाए स्याम।
यह सुनि सखा सबै जुरि आए, सुबल, सुदामा अरु श्रीदाम।
कमल-पत्र दोना पलास के, सब आगैं धरि परुसत जात।
ग्वाल-मंडली मध्य स्याम-घन, सब मिलि भोजन रुचि करि खात।
ऐसी भूख माहिं यह भोजन, पठै दियौ है जसुमति माता।
सुर स्याम अपनौ नहिं जेंवत, ग्वालनि कर तैं लै-लै खात।।465।।