आई गई व्रजनारि तहाँ।
सौह करत पिय प्यारी आगै, आनंद बिरह महाँ।।
प्यारी हँसी देखि सखियन कौ, अंतर रिस है भारी।
नैन सैन दै अंग दिखावति, पिय सोभा अधिकारी।।
स्याम रहे मुख मूँदि सकुचि कै, जुवति परस्पर हेरै।
'सूरदास' प्रभु सँग अनूप छवि, कहँ पायौ किहि केरै।।2561।।