आँजनौक

आँजनौक
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विवरण 'आँजनौक' ब्रजमण्डल स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यह विशाखा सखी का निवास स्थान है, जो राधा जी की अष्टसखियों में से एक थीं।
राज्य उत्तर प्रदेश
भौगोलिक स्थिति नन्दगाँव से पाँच मील पूर्व-दक्षिण कोण में आँजनौक अवस्थित है।
प्रसिद्धि धार्मिक स्थल
संबंधित लेख ब्रज, कृष्ण, राधा, ब्रज के वन, कृष्ण और गोपियाँ, अष्टसखियाँ
अन्य जानकारी कौतुकी कृष्ण ने अपनी प्राणवल्लभा राधा के नेत्रों में इसी स्थान पर अंजन लगाया था। इसलिए यह लीलास्थली 'आँजनौक' नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ यहाँ रासमण्डल भी है, जहाँ रासलीला हुई थी।
अद्यतन‎ 03:32 15 जुलाई, 2016 (IST)

आँजनौक भगवान श्रीकृष्ण से सम्बंधित ब्रजमण्डल की प्रसिद्ध धार्मिक स्थली है। यह राधा जी की अष्टसखियों में से एक विख्यात श्रीविशाखा सखी का निवास-स्थान है। इनके पिता का नाम श्रीपावन गोप और माता का नाम देवदानी गोपी था।[1] नन्दगाँव से पाँच मील पूर्व-दक्षिण कोण में आँजनौक अवस्थित है। यहाँ कौतुकी कृष्ण ने अपनी प्राणवल्लभा राधा के नेत्रों में अंजन लगाया था। इसलिए यह लीलास्थली 'आँजनौक' नाम से प्रसिद्ध है।

कथा

एक समय राधिका ललिता-विशाखा आदि सखियों के साथ किसी निर्जन कुंज में बैठकर सखियों के द्वारा वेश-भूषा धारण कर रही थीं। सखियों ने नाना प्रकार के अलंकारों एवं आभूषणों से उन्हें अलंकृत किया। केवल नेत्रों में अंजन लगाने जा रही थीं कि उसी समय अचानक कृष्ण ने मधुर बाँसुरी बजाई। उनकी बाँसुरी की ध्वनि सुनते ही राधिका उन्मत्त होकर बिना अंजन लगाये ही प्राणवल्लभ से मिलने के लिए परम उत्कण्ठित होकर चल दीं। कृष्ण भी उनकी उत्कण्ठा से प्रतीक्षा कर रहे थे। जब वे प्रियतम से मिलीं तो कृष्ण उन्हें पुष्प आसन पर बिठाकर तथा उनके गले में हाथ डालकर सतृष्ण नेत्रों से उनके अंग-प्रत्यंग की शोभा का निरीक्षण करने लगे। परन्तु उनके नेत्रों में अंजन न देखकर सखियों से इसका कारण पूछा। सखियों ने उत्तर दिया कि हम लोग इनका श्रृंगार कर रही थीं। प्राय: सभी श्रृंगार हो चुका था, केवल नेत्रों में अंजन लगाना शेष था, किन्तु इसी बीच आपकी मुरली की मधुर ध्वनि सुनकर आप से मिलने के लिए अनुरोध करने पर भी बिना एक क्षण रुके चल पड़ीं। ऐसा सुनकर कृष्ण रसावेश में आकर स्वयं अपने हाथों से उनके नेत्रों में अंजन लगाकर दर्पण के द्वारा उनकी रूप माधुरी का उनको आस्वादन कराकर स्वयं भी आस्वादन करने लगे।

अन्य दर्शनीय स्थल

इस लीला के कारण इस स्थान का नाम आँजनौक है। यहाँ रासमण्डल है, जहाँ रासलीला हुई थी। गाँव के दक्षिण में 'किशोरी कुण्ड' है। कुण्ड के पश्चिम तट पर अंजनी शिला है, जहाँ श्रीकृष्ण ने श्री राधा जी को बैठाकर अंजन लगाया था।


Seealso.jpg इन्हें भी देखें: कोकिलावन, ब्रज एवं कृष्ण

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अञ्जपुरे समाख्याते सुभानुर्गोप: संस्थित:। देवदानीति विख्याता गोपिनी निमिषसुना। तयो: सुता समुत्पन्ना विशाखा नाम विश्रुता ॥

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