आँगन स्याम नचावहीं, जसुमति नँदरानी।
तारी दै-दै गावहीं मधुरी मृदु बानी।
पाइनि नूपुर बाजई, कटि किंकिनि कूजै।
नान्हीं एड़ियनि अरुनता, फल-बिंब नपूजै।
जसुमति गान सुनै स्रवन, तब आपुन गावै।
तारी बजावत देखई, पुनि आपु बजावै।
केहरि-नख उर पर रुरै, सुठि सोभाकारी।
मनौ स्याम धन मध्य मैं, नव ससि-उजियारी।
गभुआरे सिर केस हैं, बर घूँघरवारे।
लटकन लटकत भाल पर, बिधु मधि गन तारे।
कठुला कंठ चिबुक-तरैं, मुख दसन बिराजैं।
खंजन बिच सुक आनि कै मनु परयौ दुराजैं।
जसुमति सुतहि नचावई, छबि देखति जिय तैं।
सूरदास प्रभु स्याय कौ, मुख टरत न हिय तैं।।134।।