अहौ नृप द्वै अरि प्रगट भए।
बसे नंद गृह गोकुल थानक, दियौ सुदननि गए।।
तुमहू कौ दुख बहुत जनम कौ, रथ मारग आरोपे।
ता दिन टे सुत सप्त देवकी, तेरै ही कर सौपे।।
जौ पै राज काज सुख चाहै, बेगि बुलाइ न लीजै।
हारि जीति दोउनि की विधि यह, जैसै होइ सो कीजै।।
ऐसी कहि बैकुंठ सिधारे, कष्ट निसा बिकराइ।
'सूर' स्याम कृत कीवै इच्छा, मुनि मन इहै उपाइ।।2923।।