अरुन नैन राजत प्रभु भोरे -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


अरुन नैन राजत प्रभु भोरे।
रतिसुख सुरति किये ललना सँग, जात समद मनमथ सर जोरे।।
अति उनीदे, अलसात, भरम गति, गोलक चपल सिथिल कछु थोरे।
मनहुँ कमल कैं कोष तमीतम, उठत रहत छवि रिपु दल दो रे।।
सोभित सुभग सजल प्रति कोरै, संगमछवि तारेऽरुन डोरे।
मनु भारति कै भँवर मीनसिसु, जात तरल चितवत चित चोरे।।
बरनि न जाइ, कहाँ लगि बरनौ, प्रेम-जलधि-बेला बर बोरे।
'सूरदास' सो कौन तिया जिनि, हरि के अंग अंग बल तोरे।।2687।।

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