अमर नारि अस्तुति करैं भारी।
एक निमिष ब्रजबासिनि कौ सुख, नहिं तिहुँ लोक बिचारी।।
धन्य कान्ह नटवर बपु काछे, धन्य गोपिका नारी।
इक-इक तैं गुन रूप उजागरि, स्याम-भावती प्यारी।।
परुसति ग्वारि ग्वाल सब जेंवत, मध्य कृष्न सुखकारी।
सूर स्याम दधि-दानी कहि-कहि, आनँद घोष-कुमारी।।1606।।