अब हौं हरि, सरनागत आयौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सारंग



अब हौं हरि, सरनागत आयौ।
कृपानिधान, सुदृष्टि हेरियै, जिहिं पतितनि अपनायौ।
ताल, मृदंग, झाँझ, इंद्रिनि मिलि, बीना, बेनु बजायौ।
मन मेरैं नट के नायक ज्‍यौं तिनहीं नाच नचायौ।
उघट्यौ सकल सँगीत रीति-भव अंगनि अंग बनायौ।
काम-क्रोध-मद-लोभ-मोह की, तान-तरंगनि गायौ।
सूर अनेक देह धरि भूतल, नाना भाव दिखायौ।
नाच्‍यौ नाच लच्‍छ चौरासी, कबहुँ न पूरौ पायौ।।205।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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