अब हरि कौने सौ रति जोरी।
काके भए, कौन के ह्वैहै, बँधे कौन की डोरी।।
त्रेता जुग इक पतिनीव्रत कियौ, सोऊ विलपत छोरी।
सूपनखा बन व्याहन आई, नाक निपात बहोरी।।
पय पीवत जिन हती पूतना, श्रुति मरजादा फोरी।
बहुतै प्रीति बढ़ाइ महरि सौ, छिनक माँझ दै तोरी।।
आरजपंथ छिड़ाइ गोपिकनि, अपने स्वारथ भोरी।
'सूरदास' करि काज आपनौ, गुडी डोर ज्यौ तोरी।। 3361।।