अब हरि एक भरोसो तेरौ -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

वंदना एवं प्रार्थना

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राग तिलंग - तीन ताल


अब हरि! एक भरोसो तेरौ।
नहिं कछु साधन ग्यान-भगति कौ, नहिं बिराग उर हेरौ॥
अघ ढोवत अघात नहिं कबहूँ, मन बिषयन कौ चेरौ।
इंद्रिय सकल भोगरत संतत, बस न चलत कछु मेरौ॥
काम-क्रोध-मद-लोभ-सरिस अति प्रबल रिपुन तें घेरौ।
परबस पर्‌यौ, न गति निकसन की जदपि कलेस घनेरौ॥
परखे सकल बंधु, नहिं को‌ऊ बिपद-काल कौ नेरौ।
दीनदयाल दया करि राख‌उ, भव-जल बूड़त बेरौ॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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