अब लौ किये रहति ही मान -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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अब लौ किये रहति ही मान।
जोबन-गुन-गरबित सुनि सजनी तज्यौ नहीं अज्ञान।।
आजु खरिक तै निकरे मोहन अँग अँग रूप निधान।
निरखि बदन छवि अरुझि परयौ मन भूली सबै सयान।।
को जानै तब तै नैननि कौ कहा भई गति आन।
‘सूर’ सु को जु रहै अपनै बल सुनत बेनु कत कान।। 104 ।।

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