अब लौं यहै कियौ तुम लेखौ।
ऐसी बुद्धि बतावति कंकन, कर-दर्पन लै देखौ।।
आपुहिं चतुर, आपुहीं सब कछु, हमकौ करति गँवार।
ओगहिं लेत फिरौ इनकैं घर, ठाढ़े ह्वै ह्वै द्वार।।
घाट छाँड़ि जैहौं तब लैहौं ज्वाब नृपहिं कह दैहौं।
जा दिन तैं इहि मारग आवति ता दिन तैं भरि लैहौं।।
इनकी बुद्धि दान हम पहिरयौ, काहैं न घर-घर जैहैं।
सूर स्याम हँसि कहत सखनि सौं, जान कौन बिधि पैहैं।।1569।।