अब राधे नाहिंन ब्रज नीति -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


अब राधे नाहिंन ब्रज नीति।
नृप भयौ कान्ह काम अधिकारी, उपजी है ज्यौ कठिन कुरीति।।
कुटिल अलक भ्रुव, चारु नैन मिलि, सँचरै स्रवन समीप समीति।
बक-बिलोकन-भेद भेदिया, जोइ कहत सोइ करत प्रतीति।।
पोच पिसुन दस दसन सभासद, प्रभु अनंग मंत्री बिनु भीति।
सखि बिनु मिले नाहिं बनि ऐहै, कठिन कुराज राज की रीति।।
मंद हास, मुख मंद बचन रुचि, मंद चाल चरननि भई प्रीति।
नख सिख तै चित चोर सकल अँग, जस राजा तस प्रजा बसीति।।
तेरौ तन धन रूप महागुन सुंदर स्याम सुनी यह कीति।
सु करि 'सूर' जिहि भाँति रहै पति, जनि बल बाँधि बढ़ावहु छीति।।2775।।

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