अब मैं नाच्‍यौ बहुत गुपाल -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग धनाश्री




अब मैं नाच्‍यौ बहुत गुपाल।
काम, क्रोध कौ पहिरि चोलना, कंठ विषय की माल।
महामोह के नूपुर बाजत, निंदा-सब्‍द-रसाल।
भ्रम-भोयौ मन भयौ पखावज, चलत असंगत चाल।
तृष्ना नाद करति घट भीतर, नाना बिधि दै ताल।
माया को कटि फेंटा बाँध्‍यौ, लोभ-तिलक दियौ भाल।
कोटिक कला काछि दिखराई जल थल सुधि नहिं काल।
सूरदास की सबै अविद्या दूरि करौ नँदलाल।।153।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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