मीराँबाई की पदावली
परीक्षा
अब नहिं बिसरूँ, म्हाँरे हिरदे लिख्यो हरि नाम । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ बिसरूँ = भूल सकती। हिरदे लिख्यो = हृदय को सदा के लिये प्रभावित कर चुका है। ऊठत... राम = उठते-बैठते सदा नाम स्मरण किया करती है। बतलाइया = पूछा है तो। कइदेणो = कर देना दे देना। पण = बाजी। सीप भर्यो = सितुही भर, केवल थोड़ा सा। टाँक भर्यो = प्रायः चार माशे की तौल में। बतलायाँ = पूछने पर। धणी = पति स्वामी। और = दूसरा कोई। मारूँ ... सेल = चाहा कि बरछी मार दूँ। पराछित = प्रायश्चित, पाप व कलंक। म्हाँने = मुझे। मेल = भेजना। रती = जरा भी। मोद = प्रसन्नता। यो तो = यह तो। सिसोद = सिसोदिया वंश के राणा ने। देवड़ी = भगवान् की। हूँ = मैं। फिर ... तलवार भी वा सदा तय्यार हूँ। ऊटाँ... भार = ऊंटों पर सामान लाद लिया। भो भो रो = जन्म जन्म का। साँड्यो मोकल्यो = साँडिये दौड़ाये। जाज्यो... दौड़ = एक ही दौड़ में पहुँच जाना। अस्तरी = स्त्री। या तो = वह तो। मुरड़ चली = लौट गई, रूठ कर चली गई। राठौड़ = माय के वाले राठौर वंशियों के यहाँ। परत... पाव = कभी पैर न रक्खूंगी। नीसरी = निकली हूँ। पण = प्रण, प्रतिज्ञा। म्हाँरे। मेरे लिये। ख्वार = खार, काँटा। बिष्.... मोड़ = भक्ति के मार्ग में आने वाली बाधाओं को कुंठित करके। धन = स्त्री वा धन्य।
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