अब तो ऐसेई दिन मेरे।
सुनि री सखी दोष नहिं काहूँ, हरि हित लोचन फेरे।।
मृगमद मलय कपूर कुमकुमा, ये सब सत्य तचे रे।
मद पवन ससि कुसुम सुकोमल, तेउ देखियत करेरे।।
बन बन बसत मोर चातक पिक, आपुन दिए बसेरे।
अब सोइ बकत जाहि जोइ भावै, बरजे रहत न मेरे।।
जे द्रुम सीचि सीचि अपने कर, किए बढ़ाइ बरेरे।
तेइ सुनि ‘सूर’ किसल गिरिवर भए, आनि नैन मग घेरे।। 3189।।