अब तुम साँची बात कही।
इतने पर जुवतिनि कौं रोकत, माँगत दान दही।।
जो हम तुम्हैं कह्यौ चाहति हौं, सो श्रीमुख प्रगटायौ।
नीकैं जाति उघारि आपनो, जुवतिनि भलैं हँसायौ।।
तुम कमरी के ओढ़नहारे, पाटंबर नहिं छाजत।
सूर स्याम कारे, तन ऊपर, कारी कामरि भ्राजत।।1517।।