अब जुवतिनि सौ प्रगटे स्याम।
अरस परस सबहिनि यह जानी, हरि लुबधे सबहिनि कै धाम।।
जा दिन जाकै भवन न आवत, सो मन मैं यह करति बिचारि।
आजु गए औरहिं काहू कै, रिस पावति, कहि बड़े लवार।।
यह लीला हरि कै मन भावत, खंडित बचन कहत सुख होत।
साँझ बोल दै जात 'सूर' प्रभु, ताकै आवत होत उदोत।।2476।।