अब जुवतिनि सौ प्रगटे स्याम -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग बिलावल


अब जुवतिनि सौ प्रगटे स्याम।
अरस परस सबहिनि यह जानी, हरि लुबधे सबहिनि कै धाम।।
जा दिन जाकै भवन न आवत, सो मन मैं यह करति बिचारि।
आजु गए औरहिं काहू कै, रिस पावति, कहि बड़े लवार।।
यह लीला हरि कै मन भावत, खंडित बचन कहत सुख होत।
साँझ बोल दै जात 'सूर' प्रभु, ताकै आवत होत उदोत।।2476।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः