अब कैं राखि लेहु भगवान -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सोरठ




अब कैं राखि लेहु भगवान।
हौं अनाथ बैठयौ द्रुम-डरिया, पारधि साधे बान।
ताकैं डर मैं भाज्‍यौ चाहत, ऊपर ढुक्‍यौ सचान।
दुहूँ भाँति दुख भयौ आनि यह, कौन उबारै प्रान।
सुमिरत ही अहि डस्‍यौ पारधी, कर छूटयौ संधान।
सूरदास सर लग्‍यौ सचानहिं, जय-जय कृपानिधान।।97।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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