अब कछु नाहिंन नाथ, रह्यौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सारंग




अब कछु नाहिंन नाथ, रह्यौ ?
सकल सभा मैं पैठि दुसासन, अंबर आनि गह्यौ ?
हारि सकल भंडार-भूमि, आपुन बन-बास लह्यौ ?
एकै चीर हुतौ मेरे पर, सो इन हरन चह्यौ।
हा जगदीस ! राखि इहि अवसर, प्रगट पुकारि कह्यौ।
सूरदास उमँगे दोउ नैना, सिंधु-प्रवाह बह्यौ।।247।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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