अपुने कौं कों न आदर देइ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

Prev.png
राग धनाश्री



            

अपुने कौं कों न आदर देइ ?
ज्‍यौं बालक अपराध कोटि करै, मातु न मानै तेइ।
ते बेलो कैसैं दहियत हैं, जे अपनैं रस भेइ।
श्री संकर बहु रतन त्‍यागि कै, बिषहिं कंठ धरि लेइ।
माता-अछत छींर बिन सुत मरै, अजा-कंट-कुच सेइ।
जद्यपि सूरज महा पतित है, पतित-पावन तुम तेइ।।200।।

इस पद के अनुवाद के लिए यहाँ क्लिक करें

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः