अपनौ गाउँ लेउ नँदरानी।
बड़े बाप की बेटी, पूतहिं भली पढ़ावति बानी।
सखा-भीर लै पैठत घर मैं आपु खाइ तौ सहिऐ।
मैं जब चली सामुहैं पकरन, तब के गुन कहा कहिऐ।
भाजि गए दुरि देखत कतहूँ, मैं घर पौढ़ी आइ।
हरैं-हरैं बेनी गहि पाछैं, बाँधी पाटी लाइ।
सुनु मैया, याके गुन मोसौं, इन मोहिं लयो बुलाई।
दधि मैं पड़ी सेंत की मोपै चींटी सबै कढ़ाई।
टहल करत मैं याके घर की यह पति सँग मिलि सोई।
सूर बचन सुनि हँसी जसोदा, ग्वालि रही मुख गोई।।322।।