अनुपम मोरें मन अभिलास -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग पीलू - ताल कहरवा


अनुपम मोरें मन अभिलास।
नव निकुंज सुख-सज्या बिरची, कान्ह-मिलन की आस॥
मंगल कलस धरे नव पल्लव, रोपे रंभा-खंभ।
निभृत निकुंज करत नित जगमग रतन-दीप-सुस्तंभ॥
बिबिध भोग, बिंजन सुहृद्य, फल मधुर, सुधा-संभार।
सुरभित सलिल धर्‌यौ भरि झारी, बिबिध भाँति उपहार॥
मृगमद-चंदन-गंध, सुलेपन, विकसित चंपा-फूल।
संपुट भरि राखे अति रुचिकर सुचि कपूर-तंबूल॥
तुलसि-मंजरी-सहित सुमन सुंदर सुगंध बर हार।
मन में ललित लालसा लसि रहि, करन मधुर मनुहार॥
एक-‌एक पल बीतत जुग-सम, चित्त परत नहिं चैन।
धधकत मन बिरहानल भीषन, छिन-छिन बाढ़त मैन॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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