अनुचर रघुनाथ कौ तव दरस-काज आयौ -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू


 
अनुचर रघुनाथ कौ तव दरस-काज आयौ।
पवन-पूत कपिस्‍वरूप, भक्तिन मैं गायौ।
आयसु जौ हाइ जननि, सकल असुर मारौं।
लंकेस्वर बाँधि राम-चरननि तर डारौं।
तपसी तप करैं जहाँ, सोई बन झाँखौं।
जाको तुम बैठी छाहँ, सोई द्रुम राखौं।
चढ़ि चलौ जौ पीठि मेरी अबहिं लै मिलाऊँ।
सूर श्री रघुनाथ जू की, लीला नित गाऊँ॥85॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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