श्रीकृष्णांक
अनिर्वचनीय भगवान श्रीकृष्ण
यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह । भगवान श्रीकृष्ण के माहात्म्य- सूचक उनके स्वरूप के परिचय एवं उनकी आलौकिक लीला का रहस्य समझाने के लिये आज पर्यन्त न जाने कितने लेखक कमल घिसते-घिसते थक गये, न जाने कितनि वक्ताओं ने श्रीकृष्ण रहस्य समझाते- समझाते अपनी जिह्वा पवित्र की और न जाने कितने भक्तवरों नें उस अलौकिक और अनिर्वचनीय तत्त्व भगवान के अमल धवल चरित्र का चिन्तन किया। किन्तु कौन कह सकता है कि श्रीकृष्ण के स्वरूप उनकी लीला एवं उनके माहात्म्य का निर्वचन हो चुका ? हजारों वक्ता, सैकड़ों लेखक और करोड़ों भक्त सब कुछ लिखकर भी, सब कुछ समझते हुए भी, लिख गये- कह गये कि भाई ! श्रीकृष्ण-तत्त्व सर्वथा अनिर्वचनीय है, हमारी ताकत नहीं कि हम कुछ कह सकें ! इसीलिये भगवान ’लोकवेदातीत’ कहे गये है। ये अलौकिक भगवान श्रीकृष्ण इतने बहुत(well extended) और लम्बे-चौडे़ है कि लोक और वेद को भर कर भी बहुत आगे निकल गये हैं। लोक की शक्ति नहीं है कि इसे सब रूप से सब तरह कह सके और वेद की भी शक्ति नहीं कि इसे सर्वस्वतया वर्णन करे या अनुभव करें। जब वेदों की यह गति है, तब हम क्षुद्र और पामर जीव उन तक कहाँ पहुँच सकते हैं। यह साधारण बृद्धि रखने वाला भी सोच सकता है। इसीलिये हम कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण सर्वथा अनिर्वचनीय हैं ! इतना होते हुए भी यही श्रीकृष्ण बड़े मायामय हैं। नास्तिक के लिये यही श्रीकृष्ण खण्डन का विषय होकर जब समझ में आ बैठते हैं, तब उसे ही आस्तिक बना देते हैं। दाराशिकोह करने बैठा था खण्डन, किन्तु भक्त हो गया। अनवरशाह चले थे इस श्रीकृष्ण-मूर्ति पर प्रहार करने, किन्तु चरणों पर गिर पड़े। रसखान पठान इस मोहिनी-मूर्ति को देखते ही अपना दुर्दान्तत्त्व खो बैठे। क्या कहें, इसी अनिर्वचनीय श्रीकृष्ण ने न जाने कितने नास्तिकों को आस्तिक और आस्तिकों को नास्तिक बना डाला हैं। इसकी महामहिमाशाली माया को कौन पार कर सका है ? |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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