अनत सुत गोरस कौं कत जात?
घर सुरभी कारी धौरी कौ माखन माँगि न खात।
दिन प्रति सबै उरहने कैं मिस, आवति है उठि प्रात।
अनलहते अपराध लगावति, बिक्ट बनावतिं बात।
निपट निसंक विवादतिं संमुख सुनि सुनि नंद रिसात।
मोसौं कहति कुपन तेरै घर ढोटाहू न अघात।
करि मनुहारि उठाइ गोद लै, बरजति सुत कौं मात।
सूर स्याम नित सुनत उरहनौ, दुख पावत तेरौ तात।।326।।