अधखुली कँचुकी उरोज अध आधे खुले -पद्माकर

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अधखुली कँचुकी उरोज अध आधे खुले -पद्माकर


अधखुली कँचुकी उरोज अध आधे खुले ,
अधखुले बैष नख रेखन के झलकैं ।
कहैं पदमाकर नवीन अध नीबी खुली ,
अधखुले छहरि छराके छोर छलकैं ।
भोर जग प्यारी अध ऊरध इतै की ओर ,
भायी झिकि झिरकि उघारि अध पलकैं ।
आँखै अधखुलीं अधखुली खिरकी है खुली ,
अधखुले आनन पै अधखुली अलकैं ।

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