अति सुंदर नँद महर-ढुटौना।
निरखि-निरखि ब्रजनारि कहतिं सब यह जानत कछु टौना।
कपट रूप की त्रिया निपाती, तबहिं रह्यौ अति छौना।
द्वार सिला पर पटकि तृना कौं, ह्वै आयौ जो पौना।
अघा बकासुर तबहिं सँहारयौ, प्रथम कियौ बन-गौना।
सूर प्रगट गिरि धरयौ बाम कर, हम जानतिं बलि बौना।।601।।