अति रँग भीनी अति रँग भीनौ। मोहन लाल बन्यौ रँग भीन्यौ।।
गोपिनि सबकौं अति सुख दीन्हौ। सबहिनि कौ मनभायौ कीनौ।।
लालन कै उर मरगजी माला। निरखत थकित भई ब्रजबाला।।
लालन पाग केसरि सोहै। देखत रतिपति कौ मन मोहै।।
लालन पीक कपोल बिराजै। अधरनि अंजनरेषा छाजै।।
तापर एक चंद्रिका धारी। अतिहिं बने बानक बनवारी।।
अँग अँग सोभा कहै कहा री। छवि पर 'सूरदास' बलिहारी।। 49 ।।