अजहूँ सावधान किन होहि।
माया विषम भुजंगिनि कौ विष, उतरयौ नाहिंन तोहि।
कृष्न सुमंत्र जियावन लूरी, जिन जन मरत जिवायौ।
बारंबार निकट स्त्रवननि हैं, गुरु - गारूड़ी सुनायौ।
बहुतक जीव देह अभिमानी, देखत ही इन खायौ।
कोउ-कोउ उबरयौ साधु-संग, जिन स्याम सजीवनि पायौ।
जाकौ मोह-भैर अति छूटै, सुजस गीत के गाऐं।
सूर भिटै अज्ञान-मूरछा, ज्ञान-सुभेषज खाऐं।।32।।
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