अखा भगत

अखा भगत
अखा भगत
पूरा नाम अखेराय
जन्म संवत 1649 (1592 ई.)
मृत्यु संवत 1730 (1673 ई.)
अभिभावक पिता- रहियो
कर्म भूमि भारत
मुख्य रचनाएँ 'अनुभवबिन्दु', 'गुरु-माहात्म्य', 'गुरु-गोविन्द-एकता', 'मायानुं स्वरूप', 'सर्वात्मभाव', 'प्रेमलक्षणा', 'जीवन्मुक्तदशा', 'ब्रह्मवस्तु-निरूपण', 'ब्रह्म-ईश्वर-जीवनी एकता', 'वितण्डावादो नुं वर्णन' और 'सत्संगमहत्ता'।
भाषा गुजराती
प्रसिद्धि कवि
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी गुजरात में प्रचलित परम्परा के अनुसार अखा सुनार का काम किया करते थे। इनका पूरा नाम 'अखेराय' था।

अखा भगत (अंग्रेज़ी: Akha Bhagat) का गुजराती भाषा के प्राचीन कवियों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। वे अपने समय के सर्वोत्तम प्रतिभा संपन्न कवि थे। उनका समय 1592 से 1673 ई. तक माना जाता है। वृत्ति की दृष्टि से वे सोने के आभूषण बनाया करते थे। अखा भगत अहमदाबाद के निवासी थे और बाद में वहीं की टकसाल में मुख्य अधिकारी हो गए थे।

जन्म

अखा भगत का जन्म संवत 1649 के लगभग हुआ था। इनके पिता का नाम रहियो था। माता का बचपन में ही देहान्त हो गया था। इनका विवाह बचपन में कर दिया गया था। ये पंद्रह वर्ष की उम्र में ही जेतलपुर से अहमदाबाद में आकर रहने लगे थे। कहते हैं कि ये अहमदाबाद में देसाई की पोल में रहते थे। इनका पूरा नाम 'अखेराय' था। आज भी सर चिनुभाई के डेरे के पास कुएं वाले खांचे में एक मकान पर ‘अखानो ओरडो’ (घर) ऐसा लिखा है। गुजरात में यह तो स्वतः सिद्ध बात मानी जाती है कि अखा अहमदाबाद के शहर में रहते थे।

वैराग्य

गुजरात में प्रचलित परम्परा के अनुसार अखा सुनार का काम किया करते थे। समाज में उन पर लोगों को अटल विश्वास था। एक बार एक स्त्री ने उनके पास तीन सौ रुपये की धरोहर रखी। कुछ समय बाद उसी स्त्री ने भक्तराज अखा से कहा कि ‘मुझे तुम इतने रुपयों की कण्ठमाला बना दो। अखा उससे बहन की तरह स्नेह करते थे। इसलिये उन्होंने एक सौ रुपये का सुवर्ण अपनी ओर से मिलाकर एक सुन्दर माला उसको बनाकर दी। परंतु उस स्त्री को यह सूझा कि अखा वृत्ति का सुनार है, इसलिये उसने इस माला में कुछ गड़बड़ अवश्य की होगी। वह परीक्षा के लिये उसे दूसरे सुनार के पास ले गयी। उसने उसमें से एक सोने की लड़ी काट ली और उसकी कीमत कम बतायी। वह स्त्री अखा के पास आकर उन्हें कोसने लगी। सरल हृदय अखा का चित्त खिन्न हो गया। मोह ने वैराग्य का रूप धारण किया। उसने कहा- "संसार साचानो न थी।" उन्होंने वैराग्य की अनुभूति नगर में रहते हुए प्राप्त की, जंगल में तपस्या करते हुए नहीं। विरक्त होकर उन्होंने सुनार के सब हथियार कुएं में फेंक दिये और साधु-संतों की खोज में घर से निकल पड़े; जिस-जिस रास्ते से वे निकले, उन्हें ठगबाजी ही दिखायी दी।

संक्षिप्त प्रसंग

एक बार वे अपना नाम और वेश बदल कर एक मन्दिर में गये। वहाँ उन्हें धक्के मारकर बाहर निकाल दिया गया। गुसाईंं जी को उन्होंने कहा कि "आप पैसे वालों के ही साथी हैं; निर्धन का कौन साथी है। इस विषय पर उनकी एक साखी प्रसिद्ध है-

"गुरु कीधा में गोकुलनाथ घरदा बळदने घाली नाथ। धन हरे, धोको नव हरे, एवो गुरु कल्याण शुं करे॥"

रचनाएँ

संत कवियों की तरह उन्होंने गुजराती साहित्य को अपूर्व देन दी है। हिंदी साहित्य के आदिकाल की तरह गुजरात में भी संत कवियों ने भक्ति धारा का प्रवाह चलाया। उन्होंने अपनी संस्कृति का प्रचार कविता-वांंड्मय द्वारा किया। नरसी, मीरां, प्रेमानन्द, शामल तथा दयाराम आदि संत कवि सुप्रसिद्ध हैं। इनमें अखा भगत का अपना स्थान है। इनकी कृतियों में ‘गीता’ सुप्रसिद्ध है। 'अनुभवबिन्दु' इनकी दूसरी सम्मानित रचना है। इसके अतिरिक्त भी 'गुरु-माहात्म्य', 'गुरु-गोविन्द-एकता', 'मायानुं स्वरूप', 'भक्ति-ज्ञान-वैराग्यनुं माहात्म्य', 'सर्वात्मभाव', 'प्रेमलक्षणा', 'जीवन्मुक्तदशा', 'ब्रह्मवस्तु-निरूपण', 'ब्रह्म-ईश्वर-जीवनी एकता', 'वितण्डावादो नुं वर्णन', 'षड्दर्शन चिकित्सा' और 'सत्संग महत्ता' आदि ग्यारह ग्रन्थ हैं, जो भक्ति ज्ञान और वैराग्य से सने हुए हैं।

मृत्यु

संवत 1730 के आस-पास अखा भगत का देहान्त हुआ था, ऐसा माना जाता है। संसार के महापुरुषों की जीवनी को यदि ध्यान से देखा जाय तो मालूम होता है कि कुछ छोटी-सी घटनाओं ने उनके जीवन में महान परिवर्तन किये। अग्नि में पड़े सुवर्ण की तरह उन्होंने अन्तर्निहित दैवी शक्ति का अनुभव किया और विश्व में समय-समय पर अनेक क्रान्तियां हुई। सूर, तुलसी और कालिदास की जीवनियों को देखें तो श्रुति परम्पराओं के अनुसार इन्होंने अपनी प्रियतमाओं से प्रेरणा प्राप्त की। इन्होंने संसार को वह साहित्य प्रदान किया है, जो कालातीत कहा जा सकता है। अखा भगत भी इसी सुवर्ण श्रृंखला की एक लड़ी थे, जिन्होंने छोटी-सी सांसारिक घटना से प्रेरणा प्राप्त कर इस संसार का मोह त्याग दिया।[1]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. लेखक- श्रीसीतारामजी सहगल

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