अंतरजामी जानि कै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


अंतरजामी जानि कै, सब ग्वाल बुलाए।
परखि लिए पाछैन कौ, तेऊ सब आए।।
सखा वृंद लै तहँ गए, बूझन तिहिं लागे।
नृपति पास हम जाहिंगे, अंबर कछु माँगे।।
हँसे स्याम मुख हेरि कै, धोवत गरबानौ।
मारत मारत सात के, दोउ हाथ पिरानौ।।
अबही दैहैं आइ कै, कछु हम लै रैहै।
पहिरावनि जो पाइ हैं, सो तुमहूँ दैहैं।।
की पहिलै ही लेहुगे, हम इहौ बिचारै।
देहु बहुत गुन मानिहै, आधीन तुम्हारै।।
मारु मारु कहि गारि दै, धिक गाइ चरैया।
कंस पास ह्वै आइयै, कामरी आढ़ैया।।
बहुरि अरस तै आइकै, तब अंबर लीजौ।
धोइ घरी करि राखिहै, भावै सो कीजौ।।
अरस नाम है महल कौ, जह राजा बैठे।
गारी दै दै सब उठे, भुज निज कर ऐठे।।
पहिरावनि कौ जुरि चले, पैहौ मल्लनि सौ।
'सूर' अजा के भोग ये, सुनि लेहु न मोसौ।।3038।।

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