अंग-अंग अप्रतिम अमित सौन्दर्य, अतुल माधुर्य महान।
दिव्य पवित्र अंग-सौरभ, संतत शुचि अधर मधुर मुसकान॥
नेत्र सुधावर्षिणी दृष्टियुत, चचलता, वक्रता विशाल।
दीर्घ कृष्ण कच, सोह चन्द्रिका, वेणि-सुगुिफत मालति-माल॥
सुकुमारता, सहज श्री-सुषमा, प्रियदर्शना, विलक्षण रूप।
सहज सरलता परम बुद्धिमा, सेवा-रति, धैर्य अनूप॥
नित्य विरह-कातरता, मिलनोत्कण्ठा, नित्य-मिलन-अनुभूति।
निरभिमानता, मान-रूपता, वामभावना, विमल विभूति॥
विनयशीलता, शुचि विनम्रता, सर्वत्यागमयता अति पूत।
करुणामयता, अति उदारता, कर्मकुशलता रस-सम्भूत॥
साधुभाव, सौशील्य परम, चापल्य मधुर, गाम्भीर्य अपार।
गीत-वाद्य-शुचि-नृत्य-कुशलता, ललित अनन्त कला-आगार॥
प्रिय-गुण-वर्णन-मुखरा अति, मन मौन, नित्य उद्दीपित भाव।