अंगनि की सुधि बिसरि गई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरा



(कहौं कहा) अंगनि की सुधि बिसरि गई।
स्याम-अधर मृदु सुनत मुरलिका, चक्रित नारि भई।
जो जैसैं सो तेसैं रहि गई सुख-दुख कह्यौ न जाई।
लिखी चित्र सी सूर सु ह्वै रहिं, इकटक पल बिसराई।।621।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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