अँचल के ऎँचे चल करती दॄगँचल को -पद्माकर

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अँचल के ऎँचे चल करती दॄगँचल को -पद्माकर


अँचल के ऎँचे चल करती दॄगँचल को ,
चंचला ते चँचल चलै न भजि द्वारे को ।
कहै पदमाकर परै सी चौँक चुम्बन मे,
छलनि छपावै कुच कुभँनि किनारे को ।
छाती के छुवै पै परै राती सी रिसाय ,
गलबाहीँ किये करै नाहीँ नाहीँ पै उचारे को ।
ही करति सीतल तमासे तुंग ती करति ,
सी करति रति मे बसी करति प्यारे को ।

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