अँखियाँ हरि दरसन की प्यासी।
देख्यौ चाहतिं कमलनैन कौ निसिदिन रहति उदासी।।
आए ऊधौ फिरि गए आँगन, डारि गए गर फाँसी।
केसरि तिलक मोतिनि की माला, वृदावन के बासी।।
काहू के मन की कोऊ जानत, लोगनि के मन हाँसी।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरे दरस कौ, करवत लैहौ कासी।।3558।।