अँखियाँ निरखि स्याममुख भूली।
चकित भई मृदु हँसनि चमक पर, इंदु कुमुद ज्यौंं फूली।।
कुललज्जा, कुलधर्म, नाम कुल, मानति नाहिन एकौ।
ऐसै ह्वै ये भजी कौ, बरजत सुनतिं न नैकौ।।
ये लुब्धी हरि-अंग-माधुरी, तनु की दसा बिसारी।
'सूर' स्याम मोहिनी लगाई, कछु पटिकै सिर डारी।।2401।।