अँखियनि स्याम अपनी करी।
जैसेहि उनि मुंह लगाई, तैसेही ये डरीं।।
इनि किये हरि हाथ अपनै, दूरि हमतै परी।
रहति बासर रैनि इकटक, घाम छाहँनि खरी।।
लोक लज्जा, निकसि, निदरी, नहीं काहूँ डरी।
ये महा अति चतुर नागरि, चतुर नागर हरी।।
रहति डोलति संग लागी, छाहँ ज्यौ नहिं टरी।
'सूर' जब हम हटकि हटकतिं, बहुत हम पर लरीं।।2404।।