अँखियनि तब तै बैर धरयौ।
जब हम हटकी हरि दरसन कौ, सो रिस नहिं बिसरयौ।।
तबहीं तै उनि हमहिं भुलायौ, गई उतहिं कौ धाइ।
अब तौ तरकि तरकि ऐठति है, लेनी लेतिं बनाइ।।
भई जाइ वै स्याम सुहागिनि, बड़भागिनि कहवावै।
'सूरदास' वैसी प्रभुता तजि, हम पै कब वै आवैं।।2405।।