अँखियनि की सुधि भूलि गई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


अँखियनि की सुधि भूलि गई।
स्याम अधर मृदु सुनत मुरलिका, चकित नारि भई।।
जो जैसै सो तैसै रहि गई, सुरा दुक कह्यौ न जाई।
लिखी चित्र की सी सब ह्वै गई इकटक पल बिसराई।।
काहूँ सुधि, काहूँ सुधि नाहींं, सहज मुरलिका गान।
धवन रवन की सुधि न रही तनु, सुनत सब्द वह कान।।
अँखियनि तै मुरली अति प्यारी, वै बैरिनि यह सौति।
'सूर' परस्पर कहति गोपिका, यह उपजी उदभौति।।2409।।

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